गलाघोंटू गाय -भैसों में पास्चुरैला मल्टीसिडा नामक जीवाणु से फैलने वाला एक संक्रामक रोग हैं! इस जीवाणु का विकास श्वास नली में होता हैं! यह गाय -भैसों के अतिरिक्त भेड़ और बकरियाँ में भी हो सकता है! इस रोग में पशु को तेज बुखार (104-107सेन्टीगर्ेट F) चढता है! श्वास नली अवरूद्ध होने से वह घुर्र -घुर्र की आवाज़ करता है! इस रोग का आक्रमण अचानक होता हैं! रोगी पशुओं के शरीर में खून की कमी हो जाती है! पशु को सॉस लेने में तकलीफ होती हैं! जीभ, गला, गर्दन, सूज जाते हैं! आंखें सूज जाते हैं! आंख, नाक, तथा मुंह से पानी टपकता है! यह बड़ा भयानक रोग हैं! इस रोग का प्रकोप प्राय : बर्षा रीतु मे होता है! इस रोग से पीडित 70-100% पशुओं की मृत्यु हो जाती है! बचाव - बचाव उपचार से बेहतर है! रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए! पशुओं के उपचार हेतु तुरंत पशु -चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए! बीमारी फैलने की दशा में गलाघोंटू के उपचार हेतु सीरम का टीका लगवा देना चाहिए! इससे लगभग 15 दिन के लिए पशुओं का रोग से बचाब हो जाता है! रोगी पशुओं के शरीर को जला देना चाहिए अथवा जमीन में गाड़ देना चाहिए! पशु के रहने के स्थान को फिनाइल से धो देना चाहिए! पशुओं को चारागाह में न चराना चाहिए! बर्षा से पूर्व मई -जून में पशु को गलाघोंटू रोग का टीका लगवा देना चाहिए! इस टीके से पशुओं का गलाघोंटू रोग से एक बर्ष तक बचाव हो जाता है! उपचार - रोग की शुरू की आवस्था में ही इलाज लाभकर हो सकता है! सल्फानैमाइड जैसे - सल्फापाइरीडिन और सल्फाडीमाइडिन आदि और एन्टीबायोटिक दवाये पशु - चिकित्सक के परामर्श से देनी चाहिए!
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