यह एक वाइस से फैलने वाला संक्रामक रोग हैं! इस रोग में पशु का तापक्रम 104-105 सेल्सियस F तक बढ़ जाता है! पशु के मुंह, खुर, थन तथा अयन पर छाले फूटते हैं!
जो घाव के रूप में बदल जाते हैं!
छाले फूटने पर छालो से पीला सा द्रव निकलता है! पैरो में छालों के कारण पशु लंगड़ाने लगता है और पशु चारा खाना बंद कर देता है! दुधारु पशुओं में दुध की मात्रा कम हो जाती है! पशु कमजोर हो जाता है और रोग का अधिक प्रकोप होने पर पशु मर भी जाता है!
उपचार = मुंह के छालों को फिटकरी या बोरिक एसिड या पोटेशियम पर मेगनेट के घोल से दिन में दो-तीन बार धोना चाहिए! भागसुहागा +4 भाग शहद मिलकर मुंह के छालों पर लगना चाहिए!
खुर के छालों को फिनाइल या पोटेशियम पर मेगनेट या तूतिया ( कॉपर सल्फ़ेट) के घोल से साफ करना चाहिए! रोगी पशुओं को हल्के पाचक भोजन जैसे - बरसीम, लोविया, चोकर, चावल का माड व अन्य हरी मुलायम घास खिलानी चाहिए!
रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए! रोग फैलने से पहले छोटे - बड़े बेक्सीन के टीका लगवा देना चाहिए!
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