अफीम (opium) - पपबर सोम्निफेरूम(papaver sominiferum)
कुल - पपवरेसी (papaceraceae)
अफीम का महत्व -
औषधियों का प्रयोग मनुष्य का रोग दूर करने के लिए किया जाता है | क्योंकि औषधी एक ऐसा पदार्थ है जिसका उपयोग करने से मनुष्य के शरीर में एक निश्चित प्रकार का असर दिखता है | किसी भी आयुर्वेदिक पदार्थ को औषधी के रूप में प्रयोग करने के लिए उस पदार्थ की गुण, मात्रा का आदि की जानकारी बहुत ज्यादा जरूरी होती है | इसकी जानकारी हमे किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिल सकती है | पुराने समय में औषधीय पेड़ – पौधों से जिव – जन्तुओं से प्राप्त की जाती थीं | लेकिन आज के समय में नए – नए तत्वों की खोज होने से हमे उनसे कई नई औषधीयां प्राप्त हुई है | सर्पगंधा , तुलसी और नीम कुछ ऐसे ही पौधे है जिनके किसी भी भाग को दवाईयों के रूप में प्रयोग किया जाता है | तो आज हम अफीम के गुणों के बारे में और उसकी खेती किस प्रकार की जाती है, इस बात की जानकारी हम आपको दे रहे है|
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अफीम के गुण :-
अफीम हमे पोस्त के पौधे से प्राप्त होती है | इसका रंग काला होता है और स्वाद कड़वा होता है | बाजार में अफीम घनाकार बर्फी के रूप में मिलती है | कई लोग इसे नशे के रूप में प्रयोग करते है | लेकिन यह एक आयुर्वेदिक औषधी है | जिससे हम कई रोगों का इलाज कर सकता है | जैसे :- कमर दर्द , सिर दर्द , अतिसार ,यानि दस्त , गर्भ अवस्था में ज्यादा खून निकलना कान का दर्द , उल्टी आदि कई बीमारियों अफीम के द्वारा ठीक किया जाता है | इसके फायदे के बारे में जानकारी देने के बाद हम इसकी खेती के बारे वर्णन करते है |
अफीम की खेती के बारे में विशेष जानकारी
· अफीम की खेती :- जैसा की हम जानते है की अफीम हमे पोस्त के पौधे से प्राप्त होता है | पोस्त फूल देने वाला एक पौधा होता है | इसे भूमध्य सागरीय क्षेत्र में उगाया जाता है | यह उस स्थान का देशज पौधा माना जाता है | लेकिन कुछ सालों में इसका विकास निम्नलिखित देशों में हुआ है भारत , चीन , एशिया माईनर तुर्की आदि | पोस्त की खेती करने के लिए और व्यापार करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है | इसके पौधे से हमे अफीम की प्राप्ति होती है जो एक नशीला पदार्थ है | इसे अलग – अलग स्थान पर अलग – अलग नामों से जाना जाता है | जैसे :-
1. हिंदी :- अफीम , पोस्त , अफीम का डोडा
2. संस्क्रत :- अहिफेन
3. गुजराती :- अफीण
4. मराठी में :- आफु, आफिमु
5. फारसी :- तियाग
6. अंगेजी में :- पोपी
7. बंगाली :- आफिम
आदि नामों से अफीम की पहचान होती है | भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश और राजस्थान में की जाती है | अफीम की तासीर बहुत गर्म होती है | इसका अधिक सेवन करने से व्यक्ति का रंग सावंला हो जाता है |
· अफीम की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :- यह समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है | इसकी खेती के लिए लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान की आवश्यकता होती है |
· अफीम की खेती के लिए भूमि का चुनाव :-अफीम को हर तरह की भूमि में उगाया जा सकता है | जिस भूमि में पानी का निकास उचित प्रकार से होता है वह मृदा इसकी खेती के लिए अच्छी होती है | इसके अलावा गहरी काली मिटटी जिसमे जिवांश पदार्थ की भरपूर मात्रा होती है उस मिटटी में अफीम की सफलतापूर्वक खेती की जाती है | जंहा पर लगभग 4 से 6 सालों तक अफीम की खेती नहीं की जा रही हो उस स्थान पर अफीम की अच्छी फसल प्राप्त होती है | यदि खेत की भूमि का पी. एच, मान 6 से 7 हो तो बेहतर होता है |
· अफीम की खेती करने से पहले खेत की तैयारी :-
किसी भी फसल को बोने के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी की जाती है | जिसके लिए खेत की दो बार आड़ी और दो बार खड़ी जुताई करें | जुताई करने के बाद खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद को एक समान मात्रा में मिला दें | खाद मिलाने के बाद खेत को मिटटी पलटने वाले हल से जोतें और बाद में पाटा अवश्य चलायें | पाटा चलाने के बाद खेत की मिटटी को भुरभूरा और समतल बना लें |
· क्यारिओं का निर्माण :- अफीम के बीज बहुत छोटे होते है | इसलिए खेत को तैयार करने के बाद 3 मीटर लम्बी और एक मीटर चौड़ी आकार की क्यारियां बना लें |
· अफीम के बीज की दर :- अफीम के बीज की दर उसकी बुआई पर निर्भर करती है यदि इसके बीजों को क्यारियों में बोना है तो एक हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 5 या 6 किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है और यदि अफीम की फकुआ बुआई करनी है तो 7 से 8 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी होती है |
· बीज उपचार - अफीम के बीजों को बोने से पहले उपचरित करना बहुत आवश्यक होता है | एक किलोग्राम बीज को लगभग 10 ग्राम नीम के तेल से उपचारित करना चाहिए | केवल उपचारित बीजों का ही उपयोग करें |
· बुआई का तरीका :-
अफीम के बीजों को क्यारियों में 0. 5 से 1 सेंटीमीटर की गहराई में बोयें | इसकों बोने के लिए दुरी का ध्यान रखे | एक कतार से दुसरे कतार की दुरी लगभग 30 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | और एक पौधे से दुसरे पौधे की बीच की दुरी 0. 9 सेंटीमीटर की होनी चाहिए |
Afim ki Kheti ke Bare Mein Vishesh Jankari
बुआई का समय :- अफीम के बीजों को अक्टूबर के आखिर सप्ताह से नवम्बर के दुसरे सप्ताह तक बुआई करें |
· अफीम की मुख्य किस्मों का नाम निम्नलिखित है :-
1. जवाहर अफीम – 16
2. जवाहर अफीम 539
3. जवाहर अफीम :- 540 आदि किस्मों को उगाया जाता है |
· सिंचाई करने का तरीका :-
अफीम के बीजों को बोने के तुरंत बाद सिंचाई करें | बीजों का अंकुरण अच्छा हो इसके लिए 7 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें | मिटटी और मौसम के अनुसार खेत में एक महीने में दो बार सिंचाई करें | जब अफीम के पौधे में कली – पुष्प , डोडा और चीरा लगे तो 3 या 7 दिन पहले सिंचाई करना बहुत आवश्यक है |
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निराई – गुड़ाई और छटाई :-
जब अफीम की फसल को 25 से 30 दिन हो जाते है तो पहली बार निराई – गुड़ाई और छटाई करनी चाहिए | दूसरी बार जब फसल को 30 से 40 दिन हो जाते है तो कई पौधों में रोग का प्रकोप हो जाता है और कुछ अन्य अविकसित पौधे नीकल जाते है | जिसे दूर करने के लिए निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | एक हेक्टेयर भूमि पर 3 से 4 लाख पौधे की संख्या रखे | जिसमे में कोई भी पौधा रोगी नहीं होना चाहिए | इसके साथ ही साथ आखिरी छटाई 50 – 50 दिन के अन्तराल पर करें | अफीम के एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दुरी कम से कम 8 से 10 सेंटीमीटर की रखे |
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