रविवार, 26 मार्च 2017

मूंग की खेती की जानकारी

ख़रीफ़ की फ़सल - मूंग

दलहनी फसलो में मूंग की बहुमुखी भूमिका है, इसमे प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो की स्वास्थ के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| मूंग की फसल से फलियों की तुडाई करने के बाद खेत में मिटटी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिटटी में दबा देने से हरी खाद का काम करती है, मूंग की खेती पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग की जाती है|

जलवायु और भूमि

मूंग की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि का होना आवश्यकता होता है?
मूंग की खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम में की जा सकती हैI फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है| खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में मूंग की खेती में अधिक सिचाई करने की आवश्यकता होती है|

प्रजातियाँ

किस प्रकार की उन्नतशील प्रजातियों का प्रयोग हम अपनी खेती में करें?
मुख्य रूप से दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियाँ पाई जाती है| पहला खरीफ में उत्पादन हेतु टाइप४४, पन्त मूंग१, पन्त मूंग२, पन्त मूंग३,नरेन्द्र मूंग १ ,मालवीय ज्योति, मालवीय जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, सम्राट, मालवीय जाग्रति, मेहा, आशा, मालवीय जनकल्यानी यह प्रजातियाँ खरीफ उत्पादन हेतु हैI इसी प्रकार जायद में उत्पादन हेतु पन्त मूंग२, नरेन्द्र मूंग१, मालवीय जाग्रति, सम्राट मूंग, जनप्रिया, मेहा, मालवीय ज्योति प्रजातियाँ जायद के लिए उपयुक्त पाई जाती है| कुछ प्रजातियाँ ऐसी है जो खरीफ और जायद दोनों में उत्पादन देती है जैसे की पन्त मूंग २, नरेन्द्र मूंग १, मालवीय ज्योति, सम्राट, मेहा, मालवीय जाग्रति यह प्रजातियाँ दोनों मौसम में उगाई जा सकती है |

खेत की तैयारी

फसल करने से पहले किस प्रकार से खेत की तैयारी करनी चाहिए?
खेत की पहली जुताई हैरो या मिटटी पलटने वाले हल से करनी चाहिए | तत्पश्चात दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चहिये आखिरी जुताई में पाटा लगाना आति आवश्यक है,जिससे की खेत में नमी आधिक समय तक बनी रह सके| ट्रेक्टर, पावर टिलर, रोटावेटर या अन्य आधुनिक यन्त्र से खेत की तैयारी शीघ्र की जा सकती है|

बीज बुवाई

मूंग की बुवाई का समय और किस विधि से उसे करना बोना चाहिए?

बुवाई खरीफ और जायद दोनों फसलो में अलग अलग की जाती है | खरीफ में जुलाई के अन्तिम सप्ताह से अगस्त के तीसरे सप्ताह तक हल के पीछे कूड़ो की जाती है | कूंड से कुंड की दूरी 30 से 35 सेंटी मीटर रखनी चाहिए और जायद में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक हल के पीछे कूड़ो में की जाती है | कुंड से कूंड 25 से 30 सेंटी मीटर रखनी चाहिए | बीज की बुवाई कूंड में 4 से 5 सेंटी मीटर कुंड में गहराई में करनी चाहिए, जिससे की गर्मी में जमाव अच्छा हो सके | जायद में या गर्मी की फसल में बुवाई के पश्चात हल्का पाटा लगाना अति आवश्यक है | जिससे की नमी न उड़ सके |

मूंग की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है, और बीजो का शोधन हमारे किसान भाई किस प्रकार करे?

मजैसा कि बीज की मात्रा समयानुसार डाली जाती है | खरीफ में 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए और जायद में 15 से 18 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए | इसका बीज शोधन 2.5 ग्राम थीरम अथवा 2 ग्राम थीरम 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज शोधित करने के बाद मूंग को राइजोवियम कल्चर के 1 पैकेट से 10 किलो ग्राम बीज का उपचार करना चाहिए | जिससे की हमारा जमाव और अच्छा हो सके और भविष्य में बीमारी कम आये |

पोषण प्रबंधन

मूंग की फसल में उर्वरको का प्रयोग कितनी मात्रा में करना चाहिए और कब करना चाहिए ?
उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियो के अनुसार ही करना चाहिए| फिर भी 10 से 15 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश की जगह सल्फर प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए | इन सभी की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ो में बीज से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए इससे अच्छी पैदावार मिलती है|

जल प्रबंधन

फसल में सिचाई कैसे करनी चाहिए और कब करनी चाहिए?
मूंग में सिचाई भूमि की किस्म, तापक्रम हवाओ की तीव्रता पर निर्भर करती है | खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियाँ बनते समय एक सिचाई करने की आवश्यकता पड़ती है | तथा जायद की फसल में पहली सिचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिचाई करते रहना चाहिए जिससे हमें अच्छी पैदावार मिल सके |

खरपतवार प्रबंधन

मूंग की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार करना चाहिए?
पहली सिचाई के 30 से 35 दिन के बाद ओट आने पर निराई गुड़ाई करना चाहिए, निराई गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ साथ वायु का संचार होता है जो की मूलग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणु द्वारा वायुमंडलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायक होती है | खरपतवार का रासायनिक नियंत्रण जैसे की पेंडामेथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर अथवा एलाकोलोर 50 ई सी 3 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर बुवाई 2 से 3 दिन के अन्दर जमाव से पहले प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिएI इससे की खरपतवार का जमाव नहीं होता है |

रोग प्रबंधन

मूंग की फसल में कौन कौन से रोग लगते है उसकी रोक थम किस प्रकार करें?
मूंग में प्रायः पीला चित्रवर्ण मोजेक रोग लगता है रोग के विषाणु सफ़ेद मख्खी द्वारा फैलते हैI इसकी रोकथाम इस प्रकार करनी चाहिए जैसे कि समय से बुवाई करना अति आवश्यक है दूसरा मोजेक अवरोधी प्रजातियाँ का प्रयोग बुवाई में करना चाहिएI तीसरा मोजेक वाले पौधे को सावधानी से उखाड़ कर नष्ट देना चाहिए | और रसायन का प्रयोग करने में डाईमेथोएट 30 ई सी 1 लीटर प्रयोग प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए | जिससे की रोग हमारे फसल पर प्रभाव नहीं डालते है |

कीट प्रबंधन

फसल में कौन कौन से कीट कीट लगने की संभावना होती है और उनकी रोकथाम किस प्रकार होनी चाहिए?
मूंग की फसल में थ्रिप्स हरे फुदके कमला कीट एवम फली वेधक कीट लगते है इनमे नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 25 ई सी 1.25 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए | जिससे की कीटों का प्रकोप न हो सके |

फसल कटाई

कटाई और मड़ाई का सही समय क्या है, कब और किस प्रकार करनी चाहिए? 
जब फसल में फलियाँ पककर अच्छी तरह से सुख जाए तभी कटाई करनी चाहिए | कटाई करने के बाद भी खलिहान अच्छी तरह सुखाकर मड़ाई करना चाहिएI इसके पश्चात ओसाई करके बीज और इसका भूसा अलग-अलग कर लेना चाहिए |

पैदावार

मूंग की फसल से पैदावार कितनी प्राप्त होती है?

किसान भाईयो सभी तकनीकी प्रयोगों से सामान्यतः खरीफ और जायद की फसलो में पैदावार अलग-अलग होती है | खरीफ में 12-15 कुंतल प्रति हैक्टर और जायद में 10-12 कुंतल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है |

मूंग की फसल प्राप्त होने पर उसका भण्डारण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें?

बीज के भण्डारण से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिएI बीज में 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए | मूंग के भण्डारण में स्टोरेज बिन का प्रयोग करना चाहिए | सूखी नीम की पत्ती को प्रयोग करने से भण्डारण में कीड़ो से सुरक्षा की जा सकती है |

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