दलहनी फसलो में चना का अत्याधिक महत्व है, विश्व में भारत का चने के उत्पादन एव् उपयोग में प्रमुख स्थान है, चने का भारत में प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट, और मध्य प्रदेश प्रमुख है
प्रजातियाँ
चने की खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ है?
चने की देशी प्रजातियाँ सामान्य प्रजातियाँ जैसे अवरोधी, पूसा 256, राधे, के 850, जे. जी. 16 तथा के.जी.डी-1168 इत्यादि प्रमुख प्रजातियाँ है, इसकी वुवाई करनी चाहिए, दूसरा आता है, देर से वुवाई करने वाली प्रजातियाँ होती है, जैसे की पूसा 372, उदय तथा पन्त जी. 186, इसके बाद आता है, काबुली चना जिसकी किसान भाई बुवाई करते है, इसके लिए प्रमुख प्रजातियाँ है, जैसे की शुभ्रा, उज्जवल, ए.के. 94-134, जे.जी के- 1 तथा चमत्कार प्रजातियाँ उपयुक्त हैं
उपयुक्त भूमि
भूमि की तैयारी हम किस प्रकार से करे?
इसकी खेती के लिए भूमि की तैयारी पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से 6 इंच गहरी दो जुताई होनी चाहिए, इसके पश्चात दो जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके पटा लगा कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए
उपयुक्त जलवायु
चने की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है?
चने की खेती के लिए समशीतोष्ण एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, चने की खेती के लिए अनुकुलित तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त माना जाता है, चने की खेती मुख्यता वर्षा आधारित क्षेत्रो में की जाती है
बीज बुवाई
बीज की बुवाई की प्रति हैक्टर कितनी मात्रा का प्रयोग हमें करना चाहिए?
चने की बुवाई के लिए छोटे दाने वाली जो प्रजातियाँ होती है, उनका 75 से 80 किलोग्राम प्रति हैक्टर तथा बड़े दाने वाली प्रजातियों का बीज 90 से 100 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से बुवाई की जाती हैI
चने के बीज का जो बीजोपचार होता है, वो हम कब करें और कैसे करें?
चने की फसल में बीज जनित रोगों के बचाव के लिए बीज को 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मैन्कोजेब या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से एक किलोग्राम बीज को बुवाई से पूर्व बीज शोधन करना अति आवश्यक है, बीज शोधन के पश्चात राइजोबियम कल्चर द्वारा बीजोपचार करना चाहिए, बीजोपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर अच्छी तरह छाया में सुखाकर बुवाई करना चाहिएI
चने के जो बीज है, उनकी बुवाई हम किस समय करे और किस तरह से करें?
इसमें दो तरह से किसान भाई इसकी खेती करते है, एक सिंचित व दूसरी असिंचित, असिंचित क्षेत्र में चने की बुवाई अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में कर देनी चाहिए, सिंचित क्षेत्र में बुवाई नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक तथा पछेती बुवाई दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए, बुवाई हल के पीछे कूडो में 6 से 8 सेन्टीमीटर की गहराई पर करना चाहिए तथा असिंचित दशा में बुवाई 20 सेन्टीमीटर तथा सिंचित दशा में 25 सेन्टीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए
जल प्रबंधन
चने की फसल में सिचाई की जरुरत पड़ती है, तो वो हमें कब करनी चाहिए?
चने की खेती में सिचाई की आवश्यता कम पडती है, लेकिन फिर भी प्रथम सिचाई आवश्यतानुसार बुवाई के 45 से 60 दिन के बाद फूल आने से पहले करना अति आवश्यक है, तथा दूसरी सिचाई फलियों में दाना बनते समय करनी चाहिए, फूल आते समय सिचाई नहीं करनी चाहिए
पोषण प्रबंधन
चने की फसल इसके लिए उर्वरको का प्रयोग कब और कितनी मात्रा में हमारे किसान भाई करे?
चने की खेती में प्रजातियों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम गंधक का प्रयोग प्रति हेक्टेअर की दर से कूडो में करना चाहिए, असिंचित दशा में देर से बुवाई की दशा में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल को फूल आने से पहले छिडकाव करना चाहिए
खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार का नियंत्रण चने की फसल में हम कैसे करें?
खरपतवार नियत्रण के लिए हमें पेंडामेथालिन की 3.3 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिला कर बुवाई के बाद एक दो दिन के अन्दर छिडकाव कर देनी चाहिए
रोग प्रबंधन
चने के खेत में कौन कौन रोग लगने की सम्भावना होती है, और उसका नियंत्रण किस तरह से करें?
चने की फसल में प्रमुख रोग होते है, जैसे उकठा रोग, मूल गलन रोग, ग्रीवा गलन रोग, तना गलन रोग, एस्कोकाइट ब्लाइट रोग प्रमुख है, इसके नियत्रण के लिए बीज को बुवाई से पूर्व 5 ग्राम ट्राईकोडरमा पाउडर से शोधित कर लेना चाहिए, उकठा रोग बचाव के लिए बुवाई देर से नवम्बर के दितीय सप्ताह में करें तो अति उत्तम होगा, तथा उकठा अवरोधी प्रजातियाँ का चयन करना चाहिए, मृदा जनित रोगों जैसे उकठा, ग्रीवा गलन, मूल गलन, तना गलन आदि रोगों के बचाव के लिए ट्राईकोडरमा पाउडरकी 5 किलोग्राम मात्रा को 2.5 कुन्तल गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिला देना चाहिए, एस्कोकाइट ब्लाइट रोग के रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइट कवक नाशी की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर दो तीन छिडकाव 10 से 12 दिन के अन्तराल पर कर देना चाहिए
कीट प्रबंधन
चने की फसल में कीट के बचाव के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं?
चने की फसल में जो कीट लगते है वह निम्न है -
कटुवा कीट यह लगभग 2 से 5 सेन्टी मीटर लम्बा तथा 0.7 सेन्टी मीटर चोड़ा मटमैला रंग का होता है, इस कीट के लिए हरे तथा भूरे रंग की सुड़ियाँ रात में निकलकर नये पौधों को जमीन की सतह से तथा पुरानी पौधों की शाखाओ को काटकर गिरा देते है, इसी तरह दूसरा और कीट होता है जिसे हम फली बेधक कीट कहते है, फली बेधक कीट की सुड़ियाँ हरे तथा भूरे रंग की होती है,नवजात सुड़ियाँप्रारम्भ में कोमल पत्तियों को खुराच कर खाती है, बाद में यह बाद में पत्तियों तथा फलियों कलिकाओ पर आक्रमण कर देती है, एक सुंडी अपने जीवन काल में 30 से 40 फलियों को प्रभावित करती हैं, इस तरह यह कीट बहुत ही नुकसान करते है, इसके नियत्रण के लिए, कीटनाशी जैसे क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.5 से 2.0 लीटर मात्रा 700 से 800 लीटर पानी में मिला कर छिडकाव करना चाहिए, साइपरमेथिन 750 मिली लीटर फेनबेनरेट 1 लीटर को 700 से 800 लीटर पानी में मिला कर छिडकाव करें
फसल कटाई
चने की फसल की कटाई का उपयुक्त समय क्या है, तथा उसका भण्डारण की तरह से करे?
चने की फलियाँ जब पक जाए, तो फसल की कटाई कर लेना अति आवश्यक हैं, तथा कटाई के पश्चात फसल को सुखा कर मड़ाई करके बीजो को निकालकर भण्डारण में कीटो से सुरक्षा के लिए एल्युमीनियम फास्फाईड की दो गोलियां प्रति मीट्रिक टन कीदर से उसमे रखनी चाहिए, जिससे की हमारा भण्डारण में बीज का नुकसान न हो सके
पैदावार
चने की उपज की प्रति हैक्टर कितनी मात्रा प्राप्त हो जाती है?
समय से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ इसकी पैदावार 20 से कुन्तल प्रति हैक्टर होती है, दूसरे नम्बर की देर से पकने वाली प्रजातियाँ उनकी 25 से 30 कुन्तल प्रति हैक्टर पैदावार होती है तथा जो काबुली प्रजातियाँ हैं, उनकी 20 से 22 कुन्तल प्रति हैक्टर पैदावार होती हैं
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