शनिवार, 5 नवंबर 2016

लेखपाल के कागजात (lakhpal 's papers )

परिचय-: 

गाँव का वह सरकारी कर्मचारी जिसके पास भूमि सम्बंधित पत्रावलियां रहती है , "लेखपाल या पटवारी " कहलाता है !

सन 1950 से पूर्व लेखपाल को ही पटवारी कहा जाता था !

जमींदारी उन्मूलन के पश्चात् (1950 के बाद ) पटवारी का नाम बदलकर लेखपाल कर दिया है !

कृषको के खेती संबधित सारे कागजात लेखपालो के पास रहते है !

प्रायः एक गाँव में एक लेखपाल रहता है  !

परंतु कुछ गाँव में 2-3  तक लेखपाल होते है ! और कुछ गाँव तो इतने छोटे - छोटे होते है कि कई गाँव का एक लेखपाल होता है !

लेखपाल किसानों के खेतों तथा उनकी कृषि के सम्बन्ध पूरी जानकारी रखता है!

गांव स्तर पर जितने भी सरकारी कर्मचारी होते है  उनमें लेखपाल से किसान से सीधा सम्बन्ध रहता है !

  अतः किसानों का लेखपाल से आये दिन काम पड़ता रहता है !

प्राचीन समय में पटवारी लोगो को बहुत अधिकार थे परंतु अब सरकार  ने बहुत कठोर कठिन नियम बना दिए हैं!

ताकि लेखपाल अनपढ़ किसानों से अनुचित लाभ न उठा सके !

शासन ने प्रत्येक किसान को जोत बही उपलब्ध करा दी है! जोत बही में किसान की भूमि का विवरण रहता है !

अतः किसान के पास भी  स्थाई भूमि का रिकार्ड रहता है! 

लेखपाल को इस प्रकार का आदेश मिला है कि जिस व्यक्ति को अपने कागजो से काम है ,उसे अपने कागज अपने कागज देख लेने दे! 

इस काम के लिए लेखपाल को किसी भी प्रकार की फीस देने की जरूरत नहीं है!

प्रत्येक  किसान को प्रति बर्ष अपने कागज देखने चाहिये अथवा खतौनी की नकल लेते रहना चाहिये !

लेखपाल के मुख्य कागजात(document) -:

1.गाँव का  नक्शा ( Village's maps) या शजरा - :📑📰 =:::
      
प्रत्येक गांव का, आबादी का,और कृषि भूमि का ,अलग -अलग नक्शा होता है जो कपड़ें या मोमी कागज पर बना होता है !

इसमें तालाब ,कुएं , नलकूप , रास्ते, नदी , नहर , सिचाई की सरकारी नालियां , खेत तथा उनकी मेड़ें बनी होती है! नक़्शे में गांव में जितने भी खेत होते है सबका नंबर बंटा होता हैं!

यदि इन नम्बरो में परिवार के बाटने में बंटवारा होता हैं अथवा किसी कारण से किसान मेड़ डालकर खेत को बाँट देता है तो लेखपाल अपने नक़्शे में खेत को बंटा डाल देता है , जैसे - खेत नं 44 दो भागों में बंट जाता है  तो गांव के नक़्शे में लेखपाल 44/1 , 44/2  दर्ज कर देता है ! 

सामान्यतः लेखपाल प्रतिवर्ष अपने हल्के से हर मौजे में 3 निरीक्षण अथवा गस्त करता है !

पहली गस्त 15 अगस्त , दूसरी गस्त 1 जनवरी तथा तीसरी गस्त 15 अप्रैल को प्रारम्भ करता है !

हर गस्त में लेखपाल  खेतों के नंबर का नक्शे से मिलान करता हैं!

और खेती की सीमा , रद्दोबदल की नापतौल करके नक़्शे में दर्ज कर देता है !


2 .खसरा-


खसरा एक क़िस्तवार रजिस्टर है! प्रत्येक मौजे के लिये अलग -अलग खसरा होता है ! इस रजिस्टर में जितने खेत होते हैं ! उनका सही - सही  क्षेत्रफल , खेतों के9 जोतने वालों के नाम , सिंचाई के साधन एवं उनमे प्रत्येक फसल में बोई गयी फसलों के नाम दर्ज होते है! लेखपाल वर्ष में तीन बार खरीफ , रबी तथा जायद ऋतुओं में  खेतों का निरीक्षण करता है ! यह रजिस्टर लेखपाल को 30 अप्रैल तक पूरा करना होता है ! तथा एक वर्ष तक अपने पास रखता है , दूसरे वर्ष इसे लेखपाल 31 जुलाई तक रजिस्ट्रर कानूगो के कार्यालय में दाखिल कर देता हैं! इन्ही रिकड़ों से सरकारी आँकड़े तैयार होते है !

खसरे से निम्नलिखित जानकारी मिल सकती हैं -

● अलग - अलग  किसानों के नाम , उनके भूमि का क्षेत्रफल ,व किसानों द्वारा दिया जाने वाला लगान !
● किसानों द्वारा खेतों में किये गए सीमा परिवर्तन !
● किसानों द्वारा बोई गई खरीफ , रबी और जायद की फसलों का क्षेत्रफल !
● सिंचाई तथा असिंचित भूमि का अलग -अलग क्षेत्रफल !
● खेतों में बोई गई फसलों के नाम !

                      खतौनी

खतौनी रजिस्टर उन सब व्यक्तियों का रजिस्टर होता हैं जो किसी स्थित भूमि पर  खेती करते हो या किसी प्रकार भूमि पर अधिकार किये हो ! इसमें गाँव के वर्ण अक्षर के क्रमानुसार खातेदारों के नाम तथा खाता होता हैं ! प्रत्येक खातेदार कितने खातों का मालिक है ! , उसके पास कितना क्षेत्रफल हैं तथा यह कितना लगान देता है , यह सब खतौनी में अंकित रहता हैं ! खतौनी तीन वर्ष तक एक ही रहती हैं और प्रतिवर्ष नवम्बर में , यदि कोई भू- स्वामित्व संबधित परिवर्तन होता हैं , तो दर्ज किया जाता हैं ! पिछली खतौनी के आधार पर नई खतौनी 15 नवम्बर तक तैयार की जाती हैं ! नये परिवर्तन लाल स्याही से अंकित किये जाते है ! खतौनी भी लेखपाल द्वारा 1 वर्ष  के लिए अपने पास रखी जाती हैं  फिर रजिस्ट्रार कानूनगों के कार्यालय में जमा कर दी जाती हैं!  बैंको में कर्ज लेने तथा जमानत  भरने आदि कार्यो के लिए किसानों को इसकी नकल की जरूरत पड़ती हैं !


खतौनी का महत्व -

● इससे  भूमि के सही मालिक का पता चलता है!
●यह पता चलता है कि किसान के पास कितनी भूमि है , तथा वह कितना लगान देता हैं !
●यह पता चलता है कि किसान कितने  समय से खेती कर रहा है !
● इसी से खसरा संख्या का पता चलता है!
● खतौनी की नकल बैंकों में कर्ज तथा जमानत आदि के काम  के काम आती हैं!

       
           

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

महापुरुषो के पिता का नाम


♥श्री राम -राजा दशरथ

 ♥श्री कृष्ण -वासुदेव जी

 ♥भक्त ध्रुव -राजा उत्तयानपाद

 ♥हर्षवर्धन -राजा प्रभाकर वर्धन

 ♥रावण -विश्वा

♥ईसामसीह - जोजफ 

♥महावीर स्वामी -राजा सिध्दार्थ

 ♥भक्त प्रह्लाद -राजा हिरण्य कश्यप 

♥भरत -दुष्यन्त 

♥जगत गुरु शंकराचार्य -शिवगुरू 

♥मोहम्मद साहब -अब्दुला 

♥रानी लछ्मी बाई -मोरोपंत

 ♥इन्दिरा गांधी -पं जवाहरलाल नेहरु

बुधवार, 2 नवंबर 2016

खेती की पद्दतियाँ/systems of cultivation

1. मिलवा फसल (मिक्स्ड क्रॉपिंग) - एक ही मौसम में एक ही खेत में एक से अधिक फसलो को उगाना या बोना मिलवां फसल कहलाता हैं! मिलवा फसले छिटकवाँ अथवा पंकित या लाइन में बोई जाती हैं!

2. बहुफसली खेती (मल्टीप्ल क्रॉपिंग और रिले क्रॉपिंग/multiple cropping or relay croppi
ng)- बहुफसली खेती से तातपर्य उस कृषि पद्दति से है जिसमे एक ही खेत में एक बर्ष की अवधि में दो या दो से अधिक फसले उगाई जाती हैं!

3.शुष्क खेती(ड्राई फार्मिंग/dry framing)- शुष्क खेती का अर्थ उन क्षेत्रों की फसल उत्पादन विधि से है जहाँ वार्षिक वर्षा 40- 48 सेंटीमीटर तक या इससे कम होटी हैं तथा सिचाई का अभाव है!

4. दियारा खेती- नदियों के दोनों से लगी भूमि जो की बर्षा ऋतु में बाढ़ के पानी में डूब जाती है और वर्षा समाप्त होने पर पानी उतरते ही दिखाई देने लगती है दियारा भूमि कहलाती है इस प्रकार की भूमि में खेती  करने को दियारा खेती कहतें है !

5.मिश्र या मिश्चित खेती(mixed farming)-  मिश्रित खेती का अर्थ खेती की उस व्यवस्था से है जिसमे फसल उगाने के साथ साथ कृषि से सम्बंधित सहायक धंधे भी अपनाये जाते है, जो कि खेती के पूरक होते हैं, जैसे - खेती के साथ - साथ पशु - पालन , मुर्गी पालन, भेड़, बकरी ,सुगर पालन ,मौन(मधुमक्खी ) पालन आदि !

6. विशिष्ट खेती (specialized farming/स्पेशलाइज्ड फार्मिंग)- विशिष्ट खेती उस खेती जो कहते हैं जिसकी कुल आय का 50% या इससे अधिक आय एक ही फसल या एक ही कृषि जिन्स से प्राप्त होती है , उदाहरण -  यदि किसी फार्म या किसी किसान के खेत पर आधे से अधिक भाग पर गन्ना की खेती होती हैं तो ऐसी कृषि को गन्ने की विशिष्ट खेती कहते हैं अथवा धान आलू , गेहूं, कपास अथवा जिस फसल का क्षेत्रफल 50% से अधिक होगा उसे उसी फसल की विशिष्ट खेती कहेगे ,जैसे- बंगाल , तमिलनाडु , उड़ीसा में धान महाराष्ट्र और गुजरात में कपास , असोम में चाय महाराष्ट्र तथा वेस्ट उत्तर प्रदेश में गन्ना , हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती आदि !

इस खेती से यह लाभ है कि जलवायु और भूमि जे के गुणो के अनुसार विशिष्ट खेती करने से आदर्श उपयोग होता है! पैदावार अधिक होती हैं! परन्तु विशिष्ट खेती के कुछ दोष हैं, जैसे - प्रतिकूल मौसम तथा बाजार की स्थति का अधिक प्रभाव पड़ता है !
एक ही फसल उगाने से मृदा उर्वरता में कमी आ जाती हैं! किसान को बर्ष भर में एक बार या दो बार ही आय होती हैं!!

7. यांत्रिक खेती ( mechanized farming)-
    यांत्रिक खेती का अर्थ उस खेती से है जो पूर्यता  या अधिकाशतः यंत्रो द्वारा की जाती हैं! ऐसी खेती में मनुष्य बल का प्रयोग अथवा पशु का प्रयोग के स्थान पर यंत्रो का अधिक प्रयोग में लाये जाते है ! यांत्रिक खेती में श्रम के स्थान पर पूँजी तथा मशीनों का महत्व अधिक है!!

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