भारत के शहरो व राज्य के भौगोलिक उपनाम
.....................................................
1. भारत का निवास स्थान - प्रयाग
2. पांच नदियों की भूमि -पंजाब
3. सात टापुओं का नगर- मुंबई
4. बुनकरों का शहर- पानीपत
5. अंतरिक्ष का शहर बेंगलुरू
6. डायमंड हार्बर -कोलकाता
7. इलेक्ट्रॉनिक नगर -बेंगलुरू
8. त्योहारों का नगर -मदुरै
9. स्वर्ण मंदिर का शहर -अमृतसर
10. महलों का शहर कोलकाता
11. नवाबों का शहर- लखनऊ
12. इस्पात नगरी -जमशेदपुर
13. पर्वतों की रानी -मसूरी
14. रैलियों का नगर -नई दिल्ली
15. भारत का प्रवेश द्वार मुंबई
16. पूर्व का वेनिस- कोच्चि
17. भारत का पिट्सबर्ग -जमशेदपुर
18. भारत का मैनचेस्टर- अहमदाबाद
19. मसालों का बगीचा -केरल
20. गुलाबी नगर- जयपुर
21. क्वीन ऑफ डेकन- पुणे
22. भारत का हॉलीवुड -मुंबई
23. झीलों का नगर -श्रीनगर
24. फलोद्यानों का स्वर्ग -सिक्किम
25. पहाड़ी की मल्लिका -नेतरहाट
26. भारत का डेट्राइट -पीथमपुर
27. पूर्व का पेरिस- जयपुर
28. सॉल्ट सिटी- गुजरात
29. सोया प्रदेश -मध्य प्रदेश
30. मलय का देश- कर्नाटक
31. दक्षिण भारत की गंगा- कावेरी
32. काली नदी- शारदा
33. ब्लू माउंटेन - नीलगिरी पहाड़ियां
34. एशिया के अंडों की टोकरी - आंध्र
प्रदेश
35. राजस्थान का हृदय - अजमेर
36. सुरमा नगरी - बरेली
37. खुशबुओं का शहर -कन्नौज
38. काशी की बहन -गाजीपुर
39. लीची नगर - देहरादून
40. राजस्थान का शिमला -माउंट आबू
41. कर्नाटक का रत्न -मैसूर
42. अरब सागर की रानी -कोच्चि
43. भारत का स्विट्जरलैंड -कश्मीर
44. पूर्व का स्कॉटलैंड- मेघालय
45. उत्तर भारत का मैनचेस्टर - कानपुर
46. मंदिरों और घाटों का नगर - वाराणसी
47. धान का डलिया- छत्तीसगढ़
48. भारत का पेरिस -जयपुर
49. मेघों का घर -मेघालय
50. बगीचों का शहर- कपूरथला
51. पृथ्वी का स्वर्ग -श्रीनगर
52. पहाड़ों की नगरी- डुंगरपुर
53. भारत का उद्यान -बेंगलुरू
54. भारत का बोस्टन -अहमदाबाद
55. गोल्डन सिटी -अमृतसर
56. सूती वस्त्रों की राजधानी
- मुंबई
57. पवित्र नदी -गंगा
58. बिहार का शोक -कोसी
59. वृद्ध गंगा- गोदावरी
60. फाउंटेन और माउंटेन शहर - उदयपुर
61. सिल्क सिटी -भागलपुर.बिहार
62.गौतम बुद्ध -बिहार.गया
63.महावीरजैन . बिहार
गुरुवार, 8 जून 2017
भारत के शहरों के बारे में सामान्य जानकारी
गुरुवार, 4 मई 2017
मानव शरीर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
हम अपने शरीर के बारे में आवश्यक बातें तो जानते हैं, लेकिन शरीर से ही संबंधित कुछ वैज्ञानिक सच ऐसे हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। ये ऐसे सच है जो हमें हैरान कर देने वाले हैं, लेकिन पता होने जरूरी हैं।
·हमारी 1 आंख में 12,00,000 फाइबर होते हैं। अगर आप जिंदगी भर पलक झपकने का वक्त जोड़ेंगे, तो 1.2 साल का अंधेरा मिलेगा।हमारे घरों में मौजूद धूल के ज्यादातर कण हमारी डेड स्किन के होते हैं।
·आंतों में इतने बैक्टीरिया मौजूद होते हैं कि उनको निकालकर एक कॉफी मग भरा जा सकता है।
·आंख अकेला ऐसा मल्टीफोकस लेंस है, जो सिर्फ 2 मिली सेकेंड में एडजस्ट हो जाता है।
·त्वचा में कुल 72 किलोमीटर नर्व होती है।
·75 फीसदी लिवर, 80 फीसदी आंत और एक किडनी बगैर भी इंसान जिंदा रह सकता है।
·अगर आप जिंदगी भर पलक झपकने का वक्त जोड़ेंगे, तो 1.2 साल का अंधेरा मिलेगा।हमारे घरों में मौजूद धूल के ज्यादातर कण हमारी डेड स्किन के होते हैं।
·व्यक्ति खाना खाए बिना कई हफ्ते गुजार सकता है, लेकिन सोए बिना केवल 11 दिन रह सकता है।
·हाथ की 1 वर्ग इंच त्वचा में 72 फीट नर्व फाइबर होता है।
·इंसान के कान 50,000 हर्ट्ज तक की फ्रीक्वेंसी सुन सकते हैं।
·शरीर में दर्द350 फीट प्रति सेकेंड की रफ्तार से आगे बढ़ता है।
·वयस्कों के बालों को उनकी लंबाई से 25फीसदी ज्यादा तक खींचा जा सकता है।
·जिस हाथ से आप लिखते हैं, उसकी उंगलियों के नाखून ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं।
·मानव शरीर में 3-4 दिन में नई स्टमक (पेट) लाइनिंग बनने लगती है।
·नवजात शिशु एक मिनट में ६० बार सांस लेता है | किशोर २० बार और युवा केवल सोलह बार |
·जब कोई मनुष्य छींकता है तो बाहर निकलने वाली हवा का वेग १६० किलोमीटर प्रति घंटा होता है मतलब एक्प्रेस गा़डी़ से भी अधिक स्पीड़।
·किसी भी दुर्घटना होने पर हड्डियाँ ही सबसे अधिक टूटती हैं, पर जबड़े की हड्डी बड़ी मजबूत होती है |वह लगभग २८० किलो वजन भी सहन कर सकती है|
·एक स्वस्थ युवा शरीर का मस्तिष्क २० वाट विद्युत पैदा कर सकता है|
·जब एक नवजात शिशु रोता है तो उसके आंसू नहीं आते क्यों कि तब तक उसकी अश्रुग्रंथियाँ विकसित नहीं होती है |
·हमें हँसाने के लिए १७ स्नायुं का प्रयोग करना पड़ता है जबकि रोने के लिए ४३ स्नायु काम में लेने पड़ते हैं |
·हमारे शरीर में लोहा भी होता है इतना किएक शरीर से प्राप्त लोहे से एक इंच की कील भी तैयार की जा सकती है |
·शरीर में एपेंडिक्स .कशेरुका की बेकार हुई पूंछ कानों में कुलबुलाने वाली मांसपेशियां आदि किसी काम नहीं आते हैं |
·खाना खाते समय जो अतिरिक्त हवा पेट में चली जाती है वह डकार बन कर वह आवाज करती है | कई लोग जम्हाई बड़ी आवाज़ के साथ लेते हैं |जब शरीर को पूरी आक्सीजननहीं मिलती है तो जम्हाई ले कर शरीर में वह आक्सीजन की कमी पूरी की जाती है | हमारे पेट में हवा, पानी होते हैं जो गुड गुड आवाज करते रहते हैं इन्हें स्टोमेक ग्राउल कहा जाता है |
·हिचकी भी एक बाडी नाईस है |डायफाम में यानी मध्य पट में तनाव की वजह से हिचकी आती है या एक मसल होती है जो फेफडों कीहवा को बाहर भीतर भेजती है जब किसी कारण यह प्रोसेस रुक जाता है तो भीतर की हवा बाहर आने के लिए धक्का देती है तो ठिक्क की आवाज आती है।
·एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में 206 हड्डियाँ होती हैं जबकि बच्चे के शरीर में 300 हड्डियाँ होती हैं (क्योंकि उनमें से कुछ गल जाती हैं और कुछ आपस में मिल जाती हैं)।
·मनुष्य के शरीर में सबसे छोटी हड्डी स्टेप्स या स्टिरुप (stapes or stirrup) होती है जो कि कान के बीच में होती है तथा जिसकी लंबाई लगभग 11 इंच (.28 से.मी.) होती है।
· मनुष्य के शरीर में मोटोर न्यूरोन्स (motor neurons) सबसे लंबी सेल होती है जो कि रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर पैर के टखने तक जाती है और जिसकी लंबाई 4.5 फुट (1.37मीटर)तक हो सकती है।
· मनुष्य की जाँघों की हड्डियाँ कंक्रीट से भी अधिक मजबूत होती हैं।
· मनुष्य की आँखों का आकार जन्म से लेकर मृत्यु तक एक ही रहता है जबकि नाक और कान के आकार हमेशा बढ़ते रहते हैं।
· आदमी एक साल में औसतन 62,05,000बार पलकें झपकाता है।
· खाए गए भोजन को पचने में लगभग 12घण्टे लगते हैं।
· मनुष्य के जबड़ों की पेशियाँ दाढ़ों में 200पौंड (90.8 कि.ग्रा.) के बराबर शक्ति उत्पन्न करती हैं।
· अभी तक प्राप्त आँकड़ों के अनुसार सबसे भारी मानव मस्तिष्क का वजन 5 पौंड 1.1औंस. (2.3 कि.ग्रा..) पाया गया है।
· एक सामान्य मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल में भूमध्य रेखा के पाँच बार चक्कर लगाने जितना चलता है।
· मनुष्य की मृत्यु हो जाने के बाद भी बाल और नाखून बढ़ते ही रहते हैं।
· मनुष्य की चमड़ी के भीतर लगभग45 मील (72 कि.मी.) लंबी तंत्रिकाएँ (नसें) होती हैं।
·सबसे छोटी अस्थि स्टेपिज़ (मध्य कर्ण में)
·सबसे बड़ी अस्थि फिमर (जंघा में)
·कशेरुकाओं की कुल संख्या ३३
·पेशियों की कुल संख्या ६३९
·सबसे लम्बी पेशी सर्टोरियास
·बड़ी आंत्र की लम्बाई १.५ मीटर
·छोटी आंत्र की लम्बाई ६.२५ मीटर
·यकृत का भार(पुरुष में) १.४ -१.८ कि ग्रा
·यकृत का भार(महिला में) १.२ -१.४ कि ग्रा
·सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत
·सर्वाधिक पुनरुदभवन की क्षमता यकृत में
·सबसे कम पुनरुदभवन की क्षमता मस्तिष्क में
·शरीर का सबसे कठोर भाग दांत का इनेमल
·सबसे बड़ी लार ग्रंथि पैरोटिड ग्रंथि
·शरीर का सामान्य तापमान ९८ .४*F (३७*C)
·शरीर में रुधिर की मात्रा ५.५ लीटर
·हीमोग्लोबिन की औसत मात्रा: १२- १५
·पुरुष में १३-१६ g/dl
·महिला में ११.५-१४ g /dl
·WBCs की संख्या ५०००-१००००/cu mm.सबसे छोटी WBC लिम्फोसाइट
·सबसे बड़ी WBC मोनोसाइट
·RBCs का जीवन काल १२० दिन
·रुधिर का थक्का बनाने का समय २-५ दिन
·सर्वग्राही रुधिर वर्ग AB
·सर्वदाता रुधिर वर्ग O
·सामान्य रुधिर दाब १२०/८० Hg
·सामान्य नब्ज़ गति ७०- ७२
·जन्म के समय १४० बार -मिनट
·१ वर्ष की आयु में १२० बार -मिनट
·१० वर्ष की आयु में ९० बार -मिनट
·व्यस्क में ७० बार -मिनट
·हृदय गति ७२ बार -मिनट
·सबसे बड़ी शिरा एन्फिरियर
·सबसे बड़ी धमनी ४२-४५ cm .
·वृक्क का भार ४२-४५ cm .
·मस्तिष्क का भार ४२-४५ cm .
·मेरु दंड की लम्बाई ४२-४५ cm
मनुष्य के शरीर के भीतर रक्त प्रतिदिन60,000 मील(96,540 कि.मी.) दूरी की यात्रा करता है।
मानव शरीर से संबंधित संख्यात्मक तथ्य
1. वस्यक व्यक्तियों में अस्थियों की संख्या :→ 206
2. खोपड़ी में अस्थियां : → 28
3. कशेरुकाओ की संख्या: →33
4. पसलियों की संख्या: →24
5. गर्दन में कशेरुकाएं : →7
6. श्वसन गति : →16 बार प्रति मिनिट
7. हृदय गति : →72 बार प्रति मिनिट
8. दंत सूत्र : → 2:1:2:3
9. रक्तदाव : →120/80
10. शरीर का तापमान : → 37 डीग्री 98.4फ़ारेनहाइट
11. लाल रक्त कणिकाओं की आयु : → 120 दिन
12. श्वेत रक्त कणिकाओ की आयु : →1 से3 दिन
13. चेहरे की अस्थियां: → 14
14. जत्रुक की संख्या :→2
15. हथेली की अस्थियां: → 14
16 पंजे की अस्थियां: → 5
17. ह्दय की दो धड़कनों के बीच का समय :→ 0.8 से.
18. एक श्वास में खीची गई वायु : →500मि.मी.
19. सुनने की क्षमता : →20 से १२० डेसीबल
20. कुल दांत : →32
21. दूध के दांतों की संख्या : → 20
22. अक्ल दाढ निकलने की आयु : → 17 से25 वर्ष
23. शरीर में अमीनों अम्ल की संख्या : → 22
24. शरीर में तत्वों की संखया : → 24
25. शरीर में रक्त की मात्रा : → 5 से 6 लीटर
(शरीर के भार का 7 प्रतिशत)
26. शरीर में पानी की मात्रा : → 70 प्रतिशत
27. रक्त का PH मान : → 7.4
28. ह्दय का भार : → 300 ग्राम
29. महिलाओं के ह्दय का भार → 250 ग्राम
30. रक्त संचारण में लगने वाला समय → 22से.
31. छोटी आंत की लंबाई → 22 फीट
33. शरीर में पानी की मात्रा → 22 लीटर
34. मष्तिष्क का भार → 1380 ग्राम
35. महिलाओं के मष्तिष्क का भार → 1250 ग्राम
36. गुणसूत्रों की संख्या → 23 जोड़े
37. जीन्स की संख्या →97 अरब
छोटी आंत्र की लम्बाई
6.25 मीटर
यकृत का भार (पुरूष)
1.4-1.8 किग्रा.
यकृत का भार (महिला में)
1.2-1.4 किग्रा.
सबसे बड़ी ग्रंथि
यकृत
सर्वाधिक पुर्नरूदभवन कि क्षमता
यकृत में
सबसे कम पुर्नरूदभवन कि क्षमता
मस्तिष्क में
शरीर का सबसे कठोर भाग
दाँत का इनेमल
सबसे बड़ी लार ग्रंथि
पैरोटिड ग्रंथि
शरीर का सामान्य तापमान
98.4 फ(37 c)
शरीर में रूधिर की मात्रा
5.5 लीटर
हीमोग्लोबिन की औसत मात्रा (पुरूष)
13-16 g/dl
हीमोग्लोबिन की औसत मात्रा (महिला में)
11.5-14 g/dl
WBCs की कुल मात्रा
5000-10000/cu mm.
सबसे छोटी WBC
लिम्फ्रोसाइट
सबसे बड़ी WBC
मोनोसाइड़
RBCs का जीवन काल
120 दिन
WBC का जीवन काल
2-5 दिन
रूधिर का थक्का बनने का समय
3-6 मिनिट
सर्वग्राही रूधिर वर्ग
AB
सर्वदाता रूधिर वर्ग
O
सामान्य रूधिर दाव
120/80 Hg
सामान्य नब्ज गति जन्म के समय
140 बार- मिनिट
सामान्य नब्ज गति 1 वर्ष की उम्र में
120 बार- मिनिट
सामान्य नब्ज गति 10 वर्ष की उम्र मे
90 बार- मिनिट
सामान्य नब्ज गति वयस्क
70 बार- मिनिट
हृदय गति
72 बार- मिनिट
सबसे बड़ी शिरा
इंफिरीयर वेनाकेवा
सबसे बडी धमनी
एब्सोमिनल एरोटा
वृक्क का भार
150 ग्राम
मस्तिक का भार
1220-1400 ग्राम
मेरूदण्ड की लम्बाई
42-45 cm
क्रेनियल तंत्रिकाओं की संख्या
12 जोडे
स्पाइनल तंत्रिकाओं की संख्या
31 जोडे
सबसे लम्बी तंत्रिका
सिएटिक
सबसे पतली एवं छोटी तंत्रिका
ट्रोक्लियर
सबसे बडी तंत्रिका
ट्राइजिमिनल
सबसे बड़ी कोशिका
तंत्रिका कोशिका
सबसे बडी अंत: स्त्रावी ग्रंथि
थॉयराइड
आकस्मिक ग्रंथि
एड्रिनल
सबसे छोटी अंत: स्त्रावी ग्रंथि
पिट्यूटरी ग्रंथि
लड़कियों में यौवनावस्था का प्रारम्भ
13 वर्ष
महिलाओ में मासिक धर्म का काल
28 दिन
गर्भावस्था की अवधि
266-270 दिन
अस्थियों की कुल संख्या
206
सबसे छोटी अस्थि
स्टेपिज (म्ध्य कर्ण में )
सबसे लम्बी अस्थि
फीमर (जंघा में )
कसेरूकाओं की कुल संख्या
33
मांसपेशियों की कुल संख्या
639
सबसे लम्बी पेशी
सारटोरियस
बड़ी आंत्र की लम्बाई
1.5 मीटर
सोमवार, 1 मई 2017
कद्दू की उन्नतशील खेती
सब्जी की खेती में कददू का प्रमुख स्थान हैI इसकी उत्पादकता एवम पोषक महत्त्व अधिक है इसके हरे फलो से सब्जी तथा पके हुए फलो से सब्जी एवम कुछ मिठाई भी बनाई जाती हैI पके कददू पीले रंग के होते है तथा इसमे कैरोटीन की मात्रा भी पाई जाती हैI इसके फूलो को भी लोग पकाकर खाते हैI इसका उत्पादन असाम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से किया जाता है
जलवायु -
इसके लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है |कददू की खेती के लिए शीतोषण एवम समशीतोषण जलवायु उपयुक्त होती है इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना चाहिएI इसको गर्म एवम तर दोनों मौसम में उगाया जाता है उचित बढ़वार के लिए पाले रहित 4 महीने का मौसम अनिवार्य हैI इसे पाले से तरबूज और खरबूजे की तुलना में कम हानी होती है I
भूमि -
इसके लिए दोमट एवम बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैI यह 5.5 से 6.8 पी एच तक की भूमि में उगाया जा सकता हैI हालाँकि मध्यम अम्लीय में भी इसे उगाया जा सकता है चूँकि यह उथली जड़ वाली फसल है अत: इसके लिए अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं होती 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर पाटा लगाएं |
प्रजातियाँ -
इसमे बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती है जैसे की पूसा विशवास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सी एस 14, सी ओ1 एवम 2, पूसा हाईब्रिड 1 एवम कासी हरित कददू की प्रजाति पाई जाती हैI
विदेशी किस्मे
भारत में पैटीपान , बतर न्ट, ग्रीन हब्बर्ड , गोल्डन हब्बर्ड , गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्मे छोटे स्तर पर उगाई जाती है |
बोने का समय -
बोने का समय इस बात पर निर्भर करता है की इसे कहाँ पर उगाया जा रहा है मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में निम्न दो बार बोया जाता है फ़रवरी-मार्च, जून-जुलाई
पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है नदियों के किनारे इसकी बुवाई दिसंबर में की जाती है |
बीज की मात्रा -
7-8 किलो ग्राम बीज हे. के लिए पर्याप्त होता है |
खाद और उर्वरक -
आर्गनिक खाद -
कद्दू की फसल और अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे कम्पोस्ट खाद का होना बहुत जरुरी है इसके लिए एक हे. भूमि में लगभग 40-50 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद और 20 किलो ग्राम नीम की खली वजन और 30 किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर खेत में बुवाई के पहले इस खाद को समान मात्रा में बिखेर दें और फिर अच्छे तरीके से खेत की जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुवाई करें |
और जब फसल 20-25 दिन की हो जाए तब उसमे नीम का काढ़ा और गौमूत्र लीटर मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें और हर 10-15 दिन के अंतर पर छिडकाव करें |
रासायनिक खाद -
250 से 300 कुन्तल सड़ी गोबर की खाद आखरी जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए इसके साथ ही 80 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवम 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवम पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागो में टाप ड्रेसिंग में देना चाहिए पहली बार 3 से 4 पत्तियां पौधे पर आने पर तथा दूसरी बार फूल आने पर नत्रजन देना चाहिएI
सिचाई एवं खरपतवार नियंत्रण -
जायद में कददू की खेती के लिए प्रत्येक सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है लेकिन खरीफ अर्थात बरसात में इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है पानी न बरसने पर एवं ग्रीष्म कालीन फसल के लिए 8-10 दिन के अंतर पर सिचाई करें | फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए फसल में 3-4 बार हलकी निराई- गुड़ाई करें गहरी निराई करने से पौधों की जड़ें कटने का भय रहता है |
कीट एवं रोग नियंत्रण -
लालड़ी -
पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है इस कीट की सुंडी भूमि के अन्दर पौधों की जड़ों को काटती है |
रोकथाम -
इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
फल की मक्खी -
यह मक्खी फलों में प्रवेश कर जाती है और वहीँ पर अंडे देती है अण्डों से सुंडी बाहर निकलती है वह फल को वेकार कर देती है यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक हानी पहुंचाती है |
रोकथाम -
इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
सफ़ेद ग्रब -
यह कीट कद्दू वर्गीय पौधों को काफी क्षति पहुंचाती है यह भूमि के अन्दर रहती है और पौधों की जड़ों को खा जाती है जिसके कारण पौधे सुख जाते है |
रोकथाम -
इसकी रोकथाम के लिए खेत में नीम का खाद प्रयोग करें |
चूर्णी फफूदी -
यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नमक फफूंदी के कारण होता है पत्तियों एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा और गोलाकार जल सा दिखाई देता है जो बाद में आकार में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है पूरी पत्तियां पिली पड़कर सुख जाती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है |
रोकथाम -
इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पिस कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
मृदु रोमिल फफूंदी -
यह स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंदी के कारण होता है रोगी पत्तियों की निचली सतह पर कोणाकार धब्बे बन जाते है जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है |
रोकथाम -
इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
मोजैक -
यह विषाणु के द्वारा होता है पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है और वे मुड़ जाती है फल छोटे बनते है और उपज कम मिलती है यह रोग चैंपा द्वारा फैलता है |
रोकथाम -
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र तम्बाकू मिलाकर पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
एन्थ्रेक्नोज -
यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है इस रोग के कारण पत्तियों और फलो पर लाल काले धब्बे बन जाते है ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते है यह रोग बीज द्वारा फैलता है |
रोकथाम -
बीज क़ बोने से पूर्व गौमूत्र या कैरोसिन या नीम का तेल के साथ उपचारित करना चाहिए |
तुड़ाई -
कद्दू के फलो की तुड़ाई बाजार मांग पर निर्भर करती है आम तौर पर बोने के 75-90 दिन बाद हरे फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है फल को किसी तेज चाकू से अलग करना चाहिए .|
उपज -
सामान्य रूप से 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती हैI
रविवार, 23 अप्रैल 2017
Cultivation of merigold
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है। इसके फूल बाजार में खुले एवं मालाएं बनाकर बेचे जाते है। गेंदे की विभिन्न ऊॅंचाई एवं विभिन्न रंगों की छाया के कारण भू-दृश्य की सुन्दरता बढ़ाने में इसका बड़ा महत्व है। साथ ही यह शादी-विवाह में मण्डप सजाने में भी अहम् भूमिका निभाता है। यह क्यारियों एवं हरबेसियस बॉर्डर के लिए अति उपयुक्त पौधा है। इस पौधे का अलंकृत मूल्य अवि उच्च है क्योंकि इसकी खेती वर्ष भर की जा सकती है। तथा इसके फूलों का धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बड़ा महत्व है। हमारे देश में मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है।
गेंदा पीले रंग का फूल है। वास्तव में गेंदा एक फूल न होकर फूलों का गुच्छा होता है, लगभग उसकी हर पत्ती एक फूल है। गेंदा का वैज्ञानिक नाम टैजेटस स्पीसीज है। भारत के विभिन्न भागों में, विशेषकर मैदानों में व्यापक स्तर पर उगाया जा रहा है। मैक्सिको तथा दक्षिण अमेरिका मूल का पुष्प है। हमारे देश में गेंदे के लोकप्रिया होने का कारण है इसका विभिन्न भौगोलिक जलवायु में सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है। मैदानी क्षेत्रों में गेंदे की तीन फ़सलें उगायी जाती है, जिससे लगभग पूरे वर्ष उसके फूल उपलब्ध रहते हैं। उत्तर भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश में छोटे किसान भी गेदें की फ़सलों को सजावट तथा मालाओं के लिए करते हैं उगाते हैं।
16वीं शताब्दी की शुरुआत में ही गेंदा, मैक्सिको से विश्व के अन्य भागों में प्रसारित हुआ। गेंदे के पुष्प का वैज्ञानिक नाम टैजेटस एक गंधर्व टैजस के नाम पर पड़ा है जो अपने सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध था। अफ्रीकन गेंदे का स्पेन में सर्वप्रथम प्रवेश सोलहवीं शताब्दी में हुआ और यह रोज आफ दी इंडीज नाम से समस्त दक्षिणी यूरोप में प्रसिद्ध हुआ। फ्रेंच गेंदे का भी विश्व में प्रसार अफ्रीकन गेंदे की भांति ही हुआ।
गेंदे का विवरण
गेंदे को विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है। इसकी खेती मुख्य रूप से बडे़ शहरो के पास जैसेः मुम्बई, पुणे, बैंगलोर, मैसूर, चेन्नई, कलकत्ता और दिल्ली में होती है।
उचित वानस्पतिक बढ़वार और फूलों के समुचित विकास के लिए धूप वाला वातावरण सर्वोत्तम माना गया है। उचित जल निकास वाली बलूवार दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उचित मानी गई है। भारत में 1,10,000 हैक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती करने वाले मुख्य राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र है। पारम्परिक फूल जिनके गेंदा का लालबाग़ तीन चौथाई भाग है। जिस भूमि का पी.एच.मान 7 से 7.5 के बीच हो, वह भूमि गेंदें की खेती के लिए अच्छी रहती है। क्षारीय व अम्लीय मृदाए इसकी खेती के लिए बाधक पायी गई है|
गेंदे के फ़ायदे
गेंदे की पत्तियों का पेस्ट फोड़े के उपचार में भी प्रयोग होता है। कान दर्द के उपचार में भी गेंदे की पत्तियों का सत्व उपयोग होता है।पुष्प सत्व को रक्त स्वच्छक, बवासीर के उपचार तथा अल्सर और नेत्र संबंधी रोगों में उपयोगी माना जाता है।टैजेटस की विभिन्न प्रजातियों में उपलब्ध तेल, इत्र उद्योग में प्रयोग किया जाता है।गेंदा जलन को नष्ट करने वाला, मरोड़ को कम करने वाला, कवक को नष्ट करने वाला, पसीना लाने वाला, आर्तवजनकात्मक होता है। इसे टॉनिक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।इसके उपयोग से दर्द युक्त मासिक स्त्राव, एक्जिमा, त्वचा के रोग, गठिया, मुँहासे, कमज़ोर त्वचा और टूटी हुई कोशिकाओं में लाभ होता है।
बीज
संकर किस्मों में 700-800 ग्राम बीज प्रति हेक्टर तथा अन्य किस्मों में लगभग 1.25 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। उत्तर प्रदेश में बीज मार्च से जून, अगस्त-सितंबर में बुवाई की जाती है |
मृदा (मिट्टी)
गेंदे की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। वैसे गहरी मृदा उर्वरायुक्त मुलायम जिसकी नमी ग्रहण क्षमता उच्च हो तथा जिसका जल निकास अच्छा हो उपयुक्त रहती है। विशेष रूप से बलुई-दोमट मृदा जिसका पी.एच. 7.0-7.5 सर्वोतम रहती है।
जलवायु
गेंदे की खेती संपूर्ण भारतवर्ष में सभी प्रकार की जलवायु में की जाती है। विशेषतौर से शीतोषण और सम-शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। नमीयुक्त खुले आसमान वाली जलवायु इसकी वृध्दि एवं पुष्पन के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है। इसकी खेती सर्दी, गर्मी एवं वर्षा तीनों मौसमों में की जाती है। इसकी खेती के लिए 14.5-28.6 डिग्री सैं. तापमान फूलों की संख्या एवं गुणवत्ता के लिए उपयुक्त है जबकि उच्च तापमान 26.2 डिग्री सैं. से 36.4 डिग्री सैं. पुष्पोत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालता है।
किस्मों का चुनाव
1. अफ्रीकन गेंदा
पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, अलास्का, एप्रिकॉट, बरपीस मिराक्ल, बरपीस ह्नाईट, क्रेकर जैक, क्राऊन ऑफ गोल्ड, कूपिड़, डबलून, फ्लूसी रफल्स, फायर ग्लो, जियाण्ट सनसेट, गोल्डन एज, गोल्डन क्लाइमेक्स जियान्ट, गोल्डन जुबली, गोल्डन मेमोयमम, गोल्डन येलो, गोल्डस्मिथ, हैपिनेस, हवाई, हनी कॉम्ब, मि.मूनलाइट, ओरेन्ज जूबली, प्रिमरोज, सोबेरेन, रिवरसाइड, सन जियान्ट्स, सुपर चीफ, डबल, टेक्सास, येलो क्लाइमेक्स, येलो फ्लफी, येलोस्टोन, जियान्ट डबल अफ्रीकन ओरेन्ज, जियान्ट डबल अफ्रीकन येलो इत्यादि।
हाइब्रिड्स : अपोलो, क्लाइमेक्स, फर्स्ट लेडी, गोल्ड लेडी, ग्रे लेडी, मून सोट, ओरेन्ज लेडी, शोबोट, टोरियडोर, इन्का येलो, इन्का गोल्ड, इन्का ओरेज्न इत्यादि।
2. फ्रेन्च गेंदा
(अ) सिंगल : डायण्टी मेरियटा, नॉटी मेरियटा, सन्नी, टेट्रा रफल्ड रेड इत्यादि।
(ब) डबल : बोलेरो, बोनिटा, बा्रउनी स्कॉट, बरसीप गोल्ड नगेट, बरसीप रेड एण्ड गोल्ड, बटर स्कॉच, कारमेन, कूपिड़ येलो, एल्डोराडो, फोस्टा, गोल्डी, जिप्सी डवार्फ डबल्, हारमनी, लेमन ड्राप, मेलोडी, मिडगेट हारमनी, ओरेन्ज फ्लेम, पेटाइट गोल्ड, पेटाइट हारमनी, प्रिमरोज क्लाइमेक्स, रेड ब्रोकेड, रस्टी रेड, स्पेनिश ब्रोकेड, स्पनगोल्ड, स्प्री, टेन्जेरीन, येलो पिग्मी इत्यादि|
खाद्य एवं उर्वरक
सड़ी हुई गोबर की खाद : 15-20 टन प्रति हैक्टेयर
यूरिया : 600 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर
सिंगल सुपर फास्फेट : 1000 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर
म्यूरेट ऑफ पोटाश : 200 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर
सारी सड़ी हुई गोबर की खाद, फास्फोरस, पोटाश व एक तिहाई भाग यूरिया को मृदा तैयार करते समय अच्छी तरह मिला लें तथा यूरिया की बची हुई मात्रा का एक हिस्सा पौधे खेत में लगाने के 30 दिन बाद व शेष मात्रा उसके 15 दिन बाद छिड़काव करके प्रयोग करें।
बीज शैया तैयार करना:
गेंदे की पौध तैयार करने के लिए बीज शैया तैयार करें, जो कि भूमि की सतह से 15 सैं.मी. ऊॅंची होनी चाहिए ताकि जल का निकास ठीक ढंग से हो सके। बीज शैया की चौड़ाई 1 मीटर तथा लंबाई आवश्यकतानुसार रखें। बीज बुवाई से पूर्व बीज शैया का 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन या कैप्टान से उपचारित करें ताकि पौधे में बीमारी न लग सके और पौध स्वस्थ रहे।
बीजों की बुवाई :
अच्छी किस्मों का चयन कर बीज शइया पर सावधानीपूर्वक बुवाई करें। ऊपर उर्वर मृदा की हल्की परत चढ़ाकर, फव्वारे से धीरे-धीरे पानी का छिड़काव कर दें।
बीज दर :
800 ग्राम से 1 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीजों का अंकुरण 18 से 30 डिग्री सैं. तापमान पर बुवाई के 5-10 दिन में हो जाता है।
बुवाई का समय
पुष्पन ऋतु
बीज बुवाई का समय
पौध रोपण का समय
वर्षा
मध्य – जून
मध्य - जुलाई
सर्दी
मध्य – सितम्बर
मध्य – अक्तूबर
गर्मी
जनवरी – फरवरी
फरवरी - मार्च
पौध रोपण :
अच्छी तरह तैयार क्यारियों में गेंदे के स्वस्थ पौधों को जिनकी 3-4 पत्तियां हों पौध रोपण हेतु प्रयोग करें। जहां तक संभव हो पौध रोपाई शाम के समय ही करेुं तथा रोपाई के पश्चात् चारों तरफ मिट्टी को दबा दें ताकि जड़ों में हवा न रहं एवं हल्की सिंचाई करें।
पौधे से पौधे की दूरी
अफ्रीकन गेंदा : 45 गुणा 45 सैं.मी. या 45 गुणा 30 सैं.मी.फ्रेन्च गेंदा : 20 गुणा 20 सैं.मी. या 20 गुणा 10 सैं.मी.
सिंचाई
गेंदा एक शाकीय पौधा है। अत: इसकी वानस्पतिक वृध्दि बहुत तेज होती है। सामान्य तौर पर यह 55-60 दिन में अपनी वानस्पतिक वृध्दि पूरी कर लेता है तथा प्रजनन अवस्था में प्रवेश कर लेता है। सर्दियों में सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में 5-7 दिन के अंतराल पर करें।
वृध्दि नियामकों का प्रयोग
पौधों की रोपाई के चार सप्ताह बाद एस ए डी एच का 250-2000 पी.पी.एम. पर्णीय छिड़काव करने से पौधों में समान वृध्दि पौधे में शाखाओं के बढ़ने के साथ ही फूलों की उपज व गुणवत्ता भी बढ़ती है।
पिंचिंग (शीर्ष कर्तन)
पौधे के शीर्ष प्रभाव को खत्म करने के लिए पौध रोपाई के 35-40 दिन बाद पौधों को ऊपर से चुटक देना चाहिए जिससे पौधों की बढ़वार रूक जाती है। तने से अधिक से अधिक संख्या में शाखाएं प्राप्त होती है तथा प्रति इर्का क्षेत्र में अधिक से अधिक मात्रा में फूल प्राप्त होते हैं।
खरपतावार नियंत्रण
खरपतवार पौधों की उपज व गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। क्योंकि खरपतवार मृदा से नमी व पोषण दोनों चुराते हैं तथा कीड़ो एवं बीमारियों को भी शरण देते हैं। अत: 3-4 बार हाथ द्वारा मजदूरों से खरपतवार निकलवा दें तथा अच्छी गुढ़ाई कराएं।
खरपतवारों का रासायनिक नियंत्रण भी किया जा सकता है। इसके लिए एनिबेन 10 पौण्ड, प्रोपेक्लोर और डिफेंनमिड़ 10 पौंड प्रति हैक्टेयर सुरक्षित एवं संतोषजनक है।
फूलों की तुड़ाई : पूरी तरह खिले फूलों को दिन के ठण्डे मौसम में यानि कि सुबह जल्दी या शाम के समय सिंचाई के बाद तोड़े ताकि फूल चुस्त एवं दूरुस्त रहें।
पैकिंग : ताजा तोड़े हुए फूलों को पॉलीथीन के लिफाफों, बांस की टोकरियों या थैलों में अच्छी तरह से पैक करके तुरंत मण्डी भेजें।
उपज : अफ्रीकन गेंदें से 20 - 22 टन ताजा फूल तथा फेंच गेंदे से 10 - 12 टन ताजा फल प्रति हैक्टेयर औसत उपज प्राप्त होती है।
कीट एवं व्याधियां
रेड स्पाइडर माइट : यह बहुत ही व्यापक कीड़ा है। यह गेंदे की पत्तियों एवंत ने के कोमल भाग से रस चूसता है। इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत मैलाथियान या 0.2 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव करें।चेपा : ये कीड़े हरे रंग के, जूं की तरह होते हैं और पत्तओं की निचली सतह से रस चूसकर काफी हानि पहँचाते हैं। चेपा विषाणु रोग भी फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए 300 मि.ली. डाईमैथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. या मैटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो अगला छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।
व्याधियां व रोकथाम
आर्द्र गलन : यह बीमारी नर्सरी में पौध तैयार करते समय आती है। इसमें पौधे का तना गलने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत कैप्टान या बाविस्टिन के घोल की डे्रचिंग करें।पत्तों का धब्बा व झुलसा रोग : इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तिायों के निचले भाग भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं जिसकी वजह से पौधों की बढ़ावर प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम. के 0.2 प्रतिशत घोल का 15-20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।